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Wednesday, August 28, 2013

ये केन्द्र का मामला है

-अब आप भोजन बँटवाएंगे?
-जी
-आपकी राज्य सरकार के पास तो पैसों की कमी है?
-आपने शायद सुना नहीं,नीयत अच्छी होनी चाहिए।
-सुना मैंने, मगर भूखा आदमी नीयत तो नहीं खा सकता ?
-आप क्या चाहते हैं सरकार रोटी बेले?
-नहीं,मगर सरकार संसाधन उपलब्ध करवा सकती है।
-बिल्कुल करवा सकती है।
-तो क्यों नहीं करवाती?
-मुझे नहीं पता। केंद्र ने कानून लागू किया है।ये केन्द्र का मामला है।
-तो आप केंद्र से बात क्यों नहीं करते?
-किया था,केन्द्र हमारी नहीं सुनता।
-तो आपने ऐसी सरकार को समर्थन क्यों दिया है जो आपकी बात नहीं सुनती?
-हम प्रतिबद्ध हैं। हम सेकुलरिज़्म की रक्षा कर रहे हैं।
-मगर आपको नहीं लगता भूख ज़्यादा बड़ी समस्या है?
-भूख एक व्यक्तिगत समस्या है।
-वो कैसे?
-आदमी को भूख अपने पेट में लगती है और पेट व्यक्तिगत अंग है।
-तो सम्प्रदाय भी व्यक्तिगत विचार है।
-नहीं। सम्प्रदाय एक समूह का होता है। समूह साम्प्रदायिकता फैला सकता है। ये एक वैश्विक समस्या है।
-भूख से भी कई प्रकार की सामाजिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
-जैसे?
-जैसे चोरी। भूखा व्यक्ति किसी और की रोटी चुरा कर भाग सकता है।
-बिल्कुल नहीं।जो भाग सकता है वो भूखा नहीं हो सकता।
-मगर भूख आदमी से कुछ भी करा सकती है।
-हाँ मगर भूखा आदमी भाग नहीं सकता। जो आदमी कुछ भी चुरा कर भाग रहा है वो चोर है।उसे हम जेल में डालेंगे।
-बहुत फासीवादी विचार हैं आपके तो?
-हम कानून को मानने वाले हैं। कानून ऐसा नहीं कहता।
-और कानून क्या कहता है?
-कानून कहता है कि जिसने चोरी की वो चोर है उसे जेल में डालो। और अब कानून ये भी कहता है कि भूखे को भोजन दो।
-मगर अभी तो आपने कहा कि भूख व्यक्तिगत समस्या है। व्यक्तिगत समस्या के लिये कानून क्यों?
-हमें नहीं पता।केन्द्र ये कानून लाई है। ये केन्द्र का मामला है।

Saturday, August 24, 2013

जातक कथाएँ -1

-बहुत पहले की बात है
-छिपकलियों का एक झुण्ड हुआ करता था.
-वो सब खुद को बाकी छिपकलियों से उच्च दर्जे का और अलग समझती थीं.
-वैसे वो उन्ही दीवारों पर रेंगती थीं जिन पर बाकी 'मूर्ख' छिपकलियाँ रेंगती थीं.
-उन्हें लगता था दीवार उनके पैरों पर टिकी हुई है.
-वो सोचती थीं, वो हट गयीं तो दीवार गिर जायेगी.
-समय बदला
-वो छिपकलियाँ खुद को क्रांतिकारी मानने लगीं.
-अब छिपकलियों के उस झुण्ड को 'कम्युनिस्ट्स' के नाम से जानते हैं.

Thursday, August 22, 2013

सरकार ऐसा नहीं मानती

सुना फ़ाइलें गायब हो गईं?
-आपको सरकार का धन्यवाद करना चाहिए
-जी?
-सरकार ने आपके मौलिक अधिकार की रक्षा की है।आप सुन सकते हैं।
-मगर फ़ाइलों का क्या?
-आप सही या गलत कुछ भी सुन सकते हैं। सरकार को धन्यवाद कहिये।
-मतलब आप कहना चाहते हैं कि मैंने ग़लत सुना है?
-मैं सिर्फ ये कह रहा हूँ कि सरकार ऐसा नहीं मानती।
-मगर सीबीआई ने तो मान लिया है?
-सीबीआई सरकार नहीं है।
-हाँ! मगर सरकार का अंग तो है ही?
-सीबीआई सरकार नहीं है।
-मंत्री जी ने भी माना है!
-मंत्री जी सरकार नहीं हैं।
-क्या?
-मंत्री जी सरकार नहीं हैं।
-तो सरकार कौन है?
-लोकतंत्र में सिर्फ जनता ही सरकार है।
-मैंने जनता को भी ऐसा कहते सुना है!
-लोकतंत्र है। वो विपक्ष की जनता होगी।
-आप ऐसा दावा कैसे कर सकते हैं?
-मैं कहाँ दावा कर रहा हूँ? दावा तो आप कर रहे हैं। मैं तो सिर्फ ये कह रहा हूँ कि सरकार ऐसा नहीं मानती!