Search This Blog

Monday, September 2, 2013

जातक कथाएँ-2

बहुत पहले की बात है सदियों पहले की. आदमी जंगल में रहता था. अलग-अलग मोहल्ले तब भी बंटे थे. एक मोहल्ले से अक्सर आवाज़ आती-" हम कालुओं को छोड़ेंगे नहीं.मार डालेंगे उन्हें" अक्सर उनके मोहल्ले में रात को मशाल जलती दिखती, मार-काट की आवाज़ भी आती. बाकी मोहल्ले के लोग इन सब घटनाओं से बहुत डरे रहते थे, एक दिन दुसरे मोहल्ले का एक बच्चा गलती से उस डरावने मोहल्ले में चला गया. वहाँ उसने जो देखा उस से वो डर गया और भागा-भागा अपने मोहल्ले आया और जो बात बतायी वो सुन कर लोगो को अचानक सारी सच्चाई समझ आ गयी और वो हँसते-हँसते दोहरे हो गए.बात जंगल में जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी.अब उस 'खूंखार' मोहल्ले वाले लोगों पर सारे जंगल के लोग हँसते और जब भी उस मोहल्ले का कोई दीखता उसे मूर्ख कहकर चिढाते.बात ये थी की उस 'खूंखार' मोहल्ले वाले सभी लोग 'भ' को 'क' बोलते थे. 'कालुओं' को मारने से उनका तात्पर्य भालुओं से था.

उस मोहल्ले वाले लोग आगे चलकर कम्युनिस्ट के नाम से जाने गए. वो आज 'क्रां(भ्रां)तियाँ फैला रहे हैं.

No comments:

Post a Comment